साल 1919 में भारत के इतिहास को नया मोड़ देने के लिए नई झोली रखने वाली घटना हुई थी। पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बंग नरसंहार को 13 अप्रैल को 104 साल पूरे हो रहे हैं। इस एक घटना ने भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जो महौल बनाया था उसने ही देश की आजादी की देनदारी और कई क्रांतिकारी पैदा किए तो गांधी जी के आंदोलन को एक नई धार दी.देश की जनता गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलनों से जुड़ाव और दायित्व बने। भारत को स्वाशासन देने की योजनाओं पर काम करना पड़ा। लेकिन यह घटना क्यों हुई इसकी भी एक कहानी है।
1910 के दशक की शुरुआत में
जब दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था तो भारत में लोग चैन से नहीं बैठे थे। भारत के लोगों की क्रांतिकारी खोज पूरी दुनिया में फैल रही थी। पंजाब और बंगाल के क्रांतिकारियों ने प्रथम विश्व युद्ध को एक अवसर की तरह देखा और गदर आंदोलन के पैमाने की शुरुआत हुई और एक बड़े पर सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत को आजाद के लिए योजना बनने लगी।
गदर पार्टी का उत्थान
लाला हरदयाल की गदर पार्टी के लेखों ने लोगों के साथ अग्रेजों के भी कान खड़ा करना शुरू कर दिए। 1913 तक पार्टी के भारत क्रांतिकारियों से भी संबंध बनने वाले इनमें रास बिहारी बोस प्रमुख थे। मई 1914 में कोमागाटा मारू जहाज कनाडा में नहीं गिरा और वापस कलकत्ता आया जिसके बाद उसके यात्रियों की गिरफ्तारी से काफी रोष का माहौल बन गया। वहीं प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना की बड़ी भूमिका के कारण भारत की आजादी की योजना भी बनने लगी।
भारत में होने लगा जमघट
अक्टूबर 1914 तक भारी संख्या में गदर पार्टी के क्रांतिकारी भारत आए और अपना नेटवर्क बनाने लगे। पंजाब, बंगाल और बनारस में जम कर तैयारियां हुईं तब से अलग-अलग स्तरों पर कई तरह के हमले देखने को मिले और धीरे-धीरे 21 फरवरी 1915 को बड़े हमलों की तारीख तय की गई। इसमें उत्तर भारत में रास बिहारी बोस, महाराष्ट्र में वीजी पिंगले और बनारस में सचचिंद्रनाथ सान्याल ने नेतृत्व किया।
अंग्रेजों को लगी भनक
लेकिन निर्धारित तरीके से पहले ही अंग्रेजों की सी नीतियों को योजना का पता चला और बड़े नेताओं की एक झूठी खबर तक अंग्रेजों तक पहुंच गई। अग्रेजों ने फौरन एक्शन की और बड़ी गदर योजना कई सारे स्थानीय विद्रोहों में बदल दी जिसे अंग्रेजों ने कुचल दिया। इसके बाद बड़े पैमाने पर गिरफतारी की स्थिति बनी लेकिन इन घटनाओं ने अंग्रेजों को रोलैट एक्ट पास करने से प्रेरित किया।
रौलेट एक्ट की ताकतें
रूलेट एक्ट 18 मार्च 1919 को लागू हुआ जिसमें किसी भी व्यक्ति को जकड़ने की स्थिति में सक्रियता काल के लिए बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार किया जा सकता था और साथ ही प्रेस पर भी हग पाबंदियां झूम उठीं। यहां तक कि रिकॉर्ड किए गए इंसान को यह जानने का हक भी नहीं था कि उस पर आरोप कौन लगा रहा है और उसके खिलाफ सबूत क्या हैं। इसका मकसद गदर आंदोलन जैसे स्थिति फिर से पैदा ना हो सके, यही था। इस कानून का तुरंत विरोध शुरू हो गया था।
पंजाब में सबसे ज्यादा विरोध
इस कानून का हर तरफ से विरोध धार्मिक रूप से कांग्रेस और सभी भारतीय नेताओं ने विरोध किया है। 30 मार्च को दिल्ली में सफल हड़ताल हुई और इसका असर हुआ कि दूसरे राज्यों में भी हड़ताल होने लगी। लेकिन पंजाब में असर सबसे गहरा हुआ और 10 अप्रैल को कांग्रेस के नेता डॉ सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया जिससे वे संबंध और रिश्ते हो गए। और पंजाब में सेना की फिर से शुरुआत हो गई।
13 अप्रैल को अमृतसर सहित पूरे पंजाब में मार्शल लॉ हुआ था। बगावत का खतरा जा रहा था। पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर फिर से किसी कीमत पर गदर जैसे हालात वापस नहीं चाहते थे। रेलवे, टेलीग्राफ और संचार व्यवस्था पहले ही ठप्प थी। डॉ सत्यपाल और किचलू की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए मार्शल लॉ के बाद भी करीब हजार से अधिक लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग में कार्य विरोध के लिए जमा हुए। ब्रिटिश सेना के जनरल डायर की आन ने इस बाग में बिना चेतावनी दिए लोगों को बारी-बारी से गोली मार दी और तब तक करते रहे जब तक गोलियां खत्म नहीं हो गईं और जलियांवाला नरसंहार को अंजाम दिया।